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फिरोजाबाद के सरकारी मेडिकल कॉलेज परिसर में इन दिनों आवारा कुत्तों की भरमार मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए परेशानी का कारण बन गई है। अस्पताल में जगह-जगह कुत्तों का घूमना और बैठना न केवल डर पैदा कर रहा है, बल्कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं और दिशा-निर्देशों पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

सरकार की योजना जागरूकता और रेबीज नियंत्रण के लिए विशेष अभियान

उत्तर प्रदेश सरकार आवारा कुत्तों के काटने पर हाइड्रोफोबिया (रेबीज) रोधी टीकों की मुफ्त सुविधा उपलब्ध कराती है। राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त टीके रखने, मरीजों को तुरंत उपचार उपलब्ध कराने और आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नगर निकायों को कठोर दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।

लेकिन विडंबना यह है कि जिस मेडिकल कॉलेज में स्वयं रेबीज का टीका लगाया जाता है, वही परिसर कुत्तों का ठिकाना बना हुआ है। इससे साफ दिखता है कि सरकार की मुहिम को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।

मरीज और तीमारदार भयभीत

अस्पताल की ब्रांचों और टाइलों से बनी जगहों पर कुत्ते आराम से बैठे हुए दिखाई देते हैं। कई मरीज और उनके परिजन दवा लेने जाते समय भी डर महसूस कर रहे हैं। लोगों का कहना है
“दवा लेने आए हैं, लेकिन डर है कि कहीं कुत्ता काट न ले, वरना टीका लगवाना पड़ेगा।

अधिकारियों ने कैमरे पर बोलने से किया इनकार

जब इस मामले पर सरकारी मेडिकल कॉलेज प्रशासन से बात की गई तो उन्होंने कैमरे पर कोई भी बयान देने से मना कर दिया। हालांकि बिना कैमरे पर अधिकारियों ने बताया कि जल्द ही आवारा कुत्तों को परिसर से हटाने की व्यवस्था की जाएगी और आगे यह समस्या दिखाई नहीं देगी।

निगम और अस्पताल प्रशासन पर सवाल

क्या नगर निगम और अस्पताल प्रबंधन आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं?

क्या रेबीज रोकथाम अभियान की निगरानी नियमित रूप से हो रही है?

अस्पताल परिसर को सुरक्षित रखने के लिए तुरंत कदम क्यों नहीं उठाए गए?

सरकार आवारा कुत्तों से होने वाले खतरे और रेबीज रोकथाम के लिए योजनाएं तो चला रही है, लेकिन जमीन पर हो रही लापरवाही मरीजों के लिए खतरा बढ़ा सकती है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन का दायित्व है कि वह परिसर को सुरक्षित और स्वच्छ रखे ताकि सरकार की योजना प्रभावी तरीके से लागू हो सके।

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